हज़रत अली का फ़रमान
अपने माल से अल्लाह तआला की फ़र्ज़ की हुई जकात निकलने मैं बुख्ल करना निहायत बुरा है !
बुख्ल से आखिरात में दोजख का अजाब हासिल होता है !
जो शख़्स बुख्ल की आदत एख्त्यार करता है उसका कोई भी खैर खाहः नहीं होता है !
नेक सुलूक मोहब्बत का सबब है और बुख्ल इजहारे अयेब का सबब है!
जीस शख़्स में बुख्ल ज्यादा होता है उसमें अयेब भी ज्यादा होता है!
जो शख़्स अपने माल और दौलत की जकात अदा कर देता है वह बुख्ल से महफूज़ रहता है!
हर हाल में अपने भाई की मदद कर और जीस हालत में वह हो उसमें उसका साथ दे!
सबसे अच्छा भाई वह है जो पूरा खैर खाह हो!
जिसमें अमानत दारी नहीं उसमें इमान नहीं!
जो शख़्स अमीन समझ कर तुझे कोई अमानत सौंपे उसके साथ धोका करना कुफ्र है!
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