शबे कद्र का मतलब क्या है?,शबे कद्र की दुआ क्या है,शबे कद्र की फजीलत क्या है
अगर आप भी लैलतुल कद्र की रात के बारे में अच्छे से जानना चाहते हैं तो आज आपको लैलतुल कद्र की पुरी पूरी जानकारी इस article में मिलने वाली है इस लिए इसे पुरा ज़रूर पढ़ें जिस में आपको बताया जायेगा कि शबे कद्र का मतलब क्या है?, शबे कद्र की दुआ क्या है, शबे कद्र की निशानी क्या है, शबे कद्र की फजीलत क्या है,
शबे कद्र का मतलब क्या है? lailatul qadr ka matalab
शबे कद्र बहुत ही बरकत वाली रात है, इसको शबे कद्र इस लिए कहते हैं, कि इसमें साल भर के अहकाम नाफीज किए जाते हैं, और फरिश्तों को साल भर के कामों और खिदमात पर मामूर किया जाता है, यह भी कहा गया है कि इस रात की दूसरी रातों पर शराफत और कद्र के वजह से इसको शबे कद्र कहते हैं और यह भी बताया जाता है कि जैसा के इस रात में नेक अमाल कुबूल किए जाते हैं और बारगाहे रब्बुल इज्जत में इसकी कद्र की जाती है इसलिए इस रात को शबे कद्र कहा जाता है (तफसीर खाजिन, जिल्द 4, सफा 473) और भी अलग-अलग शराफत इस मुबारक रात को हासिल है,
बुखारी शरीफ में है, कि हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जिसने लैलतुल कद्र में ईमान और इख्लास के साथ क्याम किया (यानी नमाज पढ़ी) तो उसके गुजरे हुए सगीरा गुनाह माफ कर दिए जाएंगे (बुखारी, जिल्द 1, सफा 660, हदीस 2014)
शबे कद्र की दुआ क्या है।। shab e qadr dua hindi
उम्मुल मुमेनिन हजरत आयशा सिद्दीका रजि अल्लाह हू तआला अन्हा फरमाती हैं कि मैंने बारगाह ए रिसालत सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम मैं अर्ज की या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो ताला अलैही वसल्लम अगर मुझे शबे कद्र का इल्म हो जाए तो क्या पढ़ूं आप सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम फरमाते हैं की इस रात को ये दुआ मांगो ।
अल्लाहुम्मा इन्नका अफुव्वुन तुहिब्बुल अफ़वा फअफू अन्नी
यानी अऐ अल्लाह तआला बेशक तू माफ फरमाने वाला है और माफी देना पसंद करता है लिहाजा मुझे फरमा (तिरमिजी, जिल्द 5, सफा 306, हदीस 3524)
काश हम रोजाना रात को यह दुआ कम से कम एक बार ही पढ़ लिया करें कि कभी तो शबे कद्र नसीब हो जाएगी और 27 वी शब को तो यह दुआ ज़रूर पढ़नी चाहिए
शबे कद्र की निशानी क्या है।। shab e qadr ki nishaniyan
हजरत सैयदुना ओबादा बिन सामीत रजि अल्लाह ताला अनह बारगाह ए रिसालत में शबे कद्र के बारे में सवाल किया तो सरकारे मदीना सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि शबे कद्र रमजान उल मुबारक के आखिरी अशरे की ताक रातों यानी 21वी 23वीं 25वीं 27वीं या 29वीं रात में तलाश करो तो जो कोई ईमान के साथ सवाब की नियत से इस मुबारक रात में इबादत करे उसके अगले पिछले गुनाह माफ कर दिए जाते हैं इस रात को पहचानने की कुछ निशानी यह भी है कि यह मुबारक रात खुली हुई रोशन और बिल्कुल साफ होती है इस रात में ना ज्यादा गर्मी होती है ना ज्यादा सर्दी बल्कि यह रात बहुत ही अलग होती है जैसा कि इसमें चांद खिला हुआ होता है इस पूरी रात में शैतानों को आसमान के सितारे नहीं मारे जाते और बहुत सारी निशानी में से यह भी है कि इस रात के गुजरने के बाद जो सुबह आती है उसमें सूरज बगैर शूआअ के तुलुअ होता है और वह ऐसा होता है गोया कि चौदहवीं का चांद अल्लाह तआला इस दिन तुलुअ आफताब के साथ शैतान को निकलने से रोक दिया है (इस एक दिन के अलावा हर रोज सूरज के साथ-साथ शैतान भी निकलता है)
शबे कद्र को छुपाने की वजह
हदीस पाक मैं फरमाया गया है की रमजान मुबारक के आखिरी अशरे की ताक रातों में या आखिरी रात में से चाहे वह 30वीं रात हो कोई एक रात शबे कद्र है इस रात को मुखफ्फि यानी पोशीदा रखने में एक हिकमत यह भी है कि मुसलमान इस रात की तलाश यानी जुस्तजू में हर रात अल्लाह तआला की इबादत में गुजारने की कोशिश करें कि ना जाने कौनसी रात शबे कद्र हो
शबे कद्र की फजीलत क्या है ।। shab qadr ki fazilat
इस मुकद्दस रात को हरगिज़ हरगिज़ गफलत में नहीं गुजारना चाहिए इस रात को इबादत करने वाले को 1000 माह यानी 83 साल 4 महीना से भी ज्यादा इबादत का सवाब आता किया जाता है और इस से ज्यादा का इल्म अल्लाह तआला जाने या उसके बताने से उसके प्यारे हबीब सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम जाने कि कितना है इस रात में हजरत सैयदना जिब्रील अलैहिस्सलाम और फरिश्ते नाजिल होते हैं और फिर इबादत करने वालों से मुसाफहा करते हैं इस मुबारक रात का हर एक लम्हा सलामती ही सलामती है और यह सलामती सुबह सादिक तक बरकरार रहती है यह अल्लाह ताला का खास खास कर्म है कि यह अजीम रात सिर्फ अपने प्यारे हबीब सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम को और आप सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम के सदके में आप सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम की उम्मत को अता की गई है अल्लाह तआला कुरआन पाक में इरशाद फरमाता है
lailatul qadr surah
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
इन्ना अंजलनाहो फि लैलतील कद्र वमा अदराका मा लैलतुल कद्र,लैलतुल कदरे खैरूम मीन अल्फे शहरीन तंजजलूल मलाईकतो वररुह फिहा बे इज़ने रब्बेहिम मीन कुल्ले अमरीन सलामुन हिया हत्ता मतलइल फजरे (सुरह,कद्र)
तर्जुमा कंजूल ईमान = अल्लाह के नाम से शुरू जो निहायत मेहरबान रहम वाला, बेशक हमने ईसे शबे कद्र में उतारा और तुमने क्या जाना क्या शबे कद्र शबे कद्र हजार महीनों से बेहतर इसमें फरिश्ते और जिब्रील उतरते हैं अपने रब के हुक्म से हर काम के लिए वह सलामती है सुबह चमकने तक
मुफस्सेरीने केराम सुरह कद्र के ताअल्लुक से ईरशाद फरमाते हैं कि,
इस रात में अल्लाह तआला ने क़ुरआने करीम को लोहे महफूज से आसमाने दुनिया पर नाजिल फरमाया और फिर तकरीबन 23 साल की मुद्दत मैं अपने प्यारे हबीब सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम पर उसे बतद्रीज नाजिल किया रसूल मोहतरम सल्लल्लाहो ताला अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया है की बेशक अल्लाह तआला ने मेरी उम्मत को शबे कद्र अता की और यह रात तुम से पहले किसी उम्मत को आता नहीं फरमाई
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